Posted: 15 Mar 2012 10:31 AM PDT
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत से जुड़े एक अहम फैसले में कहा है कि मां-बाप अपनी कृतघ्न संतान को पारिवारिक संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं। किसी वसीयत की विश्वसनीयता पर इस आधार पर संदेह नहीं किया जा सकता कि वसीयतकर्ता ने पारिवारिक संपत्ति में ‘कृतघ्न संतान’ को हिस्सा देने से मना कर दिया और सारी संपत्ति उस बेटे के नाम कर दी जिसने बूढ़े मां-बाप की मृत्युपर्यत देखभाल की।
जस्टिस जीएस सिंघवी और एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का एक फैसला खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने वसीयतकर्ता हरिशंकर द्वारा दो बेटों विनोद कुमार और आनंद कुमार को दरकिनार कर तीसरे बेटे महेश कुमार के पक्ष में की गई वसीयत की प्रामाणिकता पर अविश्वास व्यक्त किया था।
जस्टिस सिंघवी ने फैसले में लिखा है, ‘संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में अपना हिस्सा अपीलकर्ता को देने के हरिशंकर के फैसले में कुछ भी अप्राकृतिक या असामान्य नहीं है। सामान्य समझ रखने वाले किसी भी व्यक्ति ने यही रुख अपनाया होता और संपत्ति में अपने हिस्से से कृतघ्न संतान को कुछ भी नहीं देता।’
पीठ ने कहा कि इस केस में यह साबित करने के लिए पर्याप्त सुबूत हैं कि हरिशंकर ने महेश कुमार के नाम वसीयत लिखी क्योंकि महेश ने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बूढ़े मां-बाप की उनकी मौत तक देखभाल की। हरिशंकर की वसीयत में उन दो बेटों को कुछ भी नहीं मिला, जो पहले ही अपना हिस्सा लेकर अलग हो गए थे। हाई कोर्ट द्वारा वसीयत पर संदेह जताए जाने के बाद महेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी।-अदालत १५.०३.१२
agar iss mamle me aap case ke number aur details ka pura khulasa dete to yeh logo ke liye bahut upyogi ban jati
ReplyDeleteRATNESH KUMAR Samat hi
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