यदि आपका कोई अपना या परिचित पीलिया रोग से पीड़ित है तो इसे हलके से नहीं लें, क्योंकि पीलिया इतना घातक है कि रोगी की मौत भी हो सकती है! इसमें आयुर्वेद और होम्योपैथी का उपचार अधिक कारगर है! हम पीलिया की दवाई मुफ्त में देते हैं! सम्पर्क करें : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 0141-2222225, 98285-02666

8.2.12

मां-बाप की मर्जी के बिना शादीशुदा औलाद उनके घर नहीं रह सकती

बॉम्बे हाई कोर्ट ने दादर पारसी कॉलोनी के निवासी 73 साल के बुजुर्ग और उनकी 35 साल की बेटी के बीच एक फ्लैट को लेकर चल रहे मुकदमे की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि बालिग हो चुकी संतान को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए उनकी सहमति जरूरी है। बिना सहमति के बालिग बेटा या बेटी माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर में नहीं रह सकते हैं। इस मामले में कोर्ट ने बेटी के फ्लैट पर दावे को खारिज कर दिया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस जेएच भाटिया द्वारा सुनाए गए फैसले के अहम बिंदु इस तरह से हैं :-

यह माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने नाबालिग बच्चों की 18 साल की उम्र तक देखभाल करें।

बालिग हो जाने के बाद माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर में रहने के लिए संतान के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं होता है।

बेटी के मामले में शादी के बाद वह अपने माता-पिता के घर में एक मेहमान होती है।

चूंकि, शादीशुदा बेटी के पास अपने ससुराल में कानूनी अधिकार मिले होते हैं, इसलिए वह अपने मायके में माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर पर कानूनी तौर पर कोई दावा नहीं कर सकती है।

माता-पिता की मर्जी से शादीशुदा बेटी जब तक चाहे उनके घर में रह सकती है।

हिंदू लॉ, 1956 की धारा 20 के मुताबिक अगर गैर-शादीशुदा बालिग बेटी अपनी कमाई या किसी अन्य प्रॉपर्टी से खर्च नहीं चला सकती है तो फिर वह अपने पिता से गुजारे की मांग कर सकती है। गुजारे के तहत रहने के लिए घर, भोजन, कपड़े जैसी चीजें मुहैया करानी होती हैं। साथ ही बेटी की शादी की भी पिता पर जिम्मेदारी होती है।

दिल्ली की एक अदालत ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए 2009 में व्यवस्था दी थी कि कोई व्यक्ति अपने बुजुर्ग माता-पिता को गुजारा भत्ता देने के लिए न केवल कानूनी रूप से बाध्य है, बल्कि यह उसका नैतिक व सामाजिक कर्तव्य भी है। कोर्ट ने ये टिप्पणी दो भाइयों की अपील खारिज करते हुए की थी। इन भाइयों ने अपनी विधवा मां को एक-एक हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी थी। यह बात और है कि दोनों भाइयों की मासिक आय एक लाख रुपये से भी ज्यादा है।

अतिरिक्त सेशन जज केएस मोही ने 2009 में दिए अपने फैसले में कहा था कि मामले का रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि मां अपने प्रिय (पुत्र) से गुजारा भत्ता चाहती है जो कि उनका सामाजिक और नैतिक कर्तव्य भी है। इस मामले में मां ने दावा किया था कि उसके बेटे लाखों की आय होने और यह जानकारी होने के बावजूद कि वह वृद्ध और अशिक्षित महिला है, उसे एक धेला भी नहीं देते हैं। सीआरपीसी का सेक्शन 125 परित्यक्ता विवाहित महिलाओं और माता-पिता को गुजारे भत्ते का अधिकार देता है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल सिर्फ बेटों की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि शादी शुदा बेटियां भी अपने बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करने के लिए कानूनन बाध्य की जा सकती हैं। कुछ महीने पहले राजस्थान हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बुजुर्ग मां-बाप के देखभाल की जिम्मेदारी बेटों के अलावा शादी-शुदा बेटियों को भी सौंपी थी।-Adalat, मां- बाप की मर्जी के बिना शादीशुदा औलाद उनके घर नहीं रह सकती, Posted: 08 Feb 2012 03:30 PM PST

No comments:

Post a Comment

Followers