लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यूपी में राज्य सरकार के गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किए जाने के खिलाफ दायर 31 याचिकाओं को खारिज कर दिया। साथ ही याची चीनी मिलों पर कुल 50 लाख रुपए का जुर्माना ठोंका है। अदालत ने कहा है कि अगर हर्जाने की राशि जमा नहीं की जाती है तो उसे संबंधित जिलाधिकारियों द्वारा भू-राजस्व की तरह वसूल किया जाएगा।
जस्टिस देवी प्रसाद सिंह और जस्टिस एस. सी. चौरसिया की खंडपीठ ने यह अहम फैसला शुक्रवार को ईस्ट यूपी शुगर मिल्स असोसिएशन लखनऊ तथा 30 अन्य चीनी मिलों की तरफ से दायर याचिकाओं पर एक साथ सुनाया।
इन याचिकाओं में राज्य सरकार ने सत्र 2011-12 के लिए राज्य परामर्शी गन्ना मूल्य तय करने संबंधी आठ नवम्बर 2011 के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी। इस आदेश के तहत राज्य सरकार ने गन्ने की अगैती फसल के लिए 250 रुपए प्रति क्विंटल और सामान्य प्रजाति के लिए 240 रुपए प्रति क्विंटल तथा कम अच्छी किस्म के गन्ने के लिए 235 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य तय किया था।
अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत राज्य विधायिकाएं गन्ना मूल्य तय करने सम्बन्धी कानून बनाने में सक्षम हैं। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार के तय किए गए न्यूनतम गन्ना मूल्य की जुडिशल रिव्यू करने का कोई कारण नजर नहीं आता। अदालत ने याचिकाओं में सत्र 2011-12 के लिए सम्बन्धित कानून से जुड़े पूरे तथ्य प्रस्तुत नहीं किए जाने पर इसे जुर्माना लगाए जाने योग्य मामला करार दिया और याचिकाकर्ता चीनी मिलों पर 50 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है जो उन्हें दो महीने में उच्च न्यायालय में जमा करना होगा।
इस धनराशि में से 25 लाख रुपए उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, को शोध आदि के कार्यों में खर्च करने के लिए दिए जाएंगे। परिषद, उस खर्च की रिपोर्ट अदालत को देगी। शेष धनराशि हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ स्थित सुलह 1 समझौता केन्द्र को दिए जाएंगे। अदालत ने कहा है कि अगर हर्जाने की राशि जमा नहीं की जाती है तो उसे संबंधित जिलाधिकारियों द्वारा भू-राजस्व की तरह वसूल किया जाएगा।-Nav Bharat Taims, 10 Feb 2012, 1833 hrs IST,भाषा
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