पति ने नहीं बनाये यौन संबंध तो दिया तलाक
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसी महिला की तलाक की याचिका कबूल कर ली है जिसके पति ने यह कहते हुए यौन संबंध बनाने से इनकार कर दिया था कि पहले वह अपनी शैक्षणिक योग्यता और नौकरी को साबित करे। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे इस लिए स्वीकार भी कर लिया क्योंकि हाल ही में उसने अपने एक फैसले में कहा था कि यदि पति या पत्नी में से कोई भी बेडरूम में संबंध बनाने से इंकार करता है तो वो किसी प्रताड़ना से कम नहीं।
जस्टिस कैलाश गंभीर ने यह बात अपने फैसले में दोहराते हुए महिला द्वारा दी गई तलाक याचिका को मंजूर कर लिया। खास बात यह है कि पति ने पत्नी से सिर्फ यह कहकर बेडरूम में संबंध बनाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी पत्नी उसके स्तर की नहीं है। उसने पत्नी से कहा था कि वो पहले अपनी वो डिग्रियां दिखाये जिनका दावा शादी के वक्त किया गया था। यही नहीं उस नौकरी की वेतन पर्ची दिखाये जो नौकरी वो करती है।
कोर्ट ने माना है कि शादीशुदा जिंदगी में सामान्य शारीरिक संबंध बनाने से मना करना बिल्कुल गलत है। शादीशुदा जिंदगी में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध बहुत मायने रखते हैं और दोनों में से किसी के भी द्वारा इससे इनकार करना दूसरे पर प्रताड़ना है। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने इसी टिप्पणी के साथ उस महिला की तलाक की याचिका कबूल कर ली।
हालांकि इस मामले में यह बात भी सिद्ध हुई कि पत्नी ने शादी के वक्त उससे झूठ बोला था कि वो नौकरी करती है। शादी के कई दिन तक तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन कुछ महीनों बाद जब पति ने देखा कि उसकी पत्नी किसी तरह के काम पर नहीं जा रही है, तो उसने बेडरूम संबंधों से इंकार कर दिया।
पत्नी को यह बात अच्छी नहीं लगी, जिस वजह से घर में कलह हुई और कई बार झगड़े भी, अंतत: पत्नि ने तलाक का फैसला किया और पारिवारिक अदालत में याचिका दायर कर दी। पारिवारिक अदालत ने भी यही फैसला सुनाया था कि यदि शारीरिक संबंध नहीं बनते हैं तो शादी का कोई मतलब नहीं। और इसके बदले में नौकरी के प्रमाण पत्र मांगना किसी क्रूरता से कम नहीं।
याचिकाकर्ता महिला ने शादी से पहले दिए गए अपने बायोडाटा में खुद के नौकरी में होने की बात कही थी, जबकि वह नौकरी नहीं करती थी। इसके बाद पति ने उसके साथ यौन संबंध बनाना छोड़ दिया। इसी को आधार बनाकर महिला ने निचली अदालत से तलाक ले लिया था।
मामला हाईकोर्ट में आने पर न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और कहा कि शारीरिक संबंध बनाने से पहले शैक्षणिक योग्यता का प्रमाण पत्र पेश करने की शर्त रखना निश्चित रूप से नृशंसता और क्रूरता है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत यह तलाक के आधारों में से एक है।
हाईकोर्ट में महिला के पति ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उसने शादी के लिए अखबार में विज्ञापन दिया था। जिसके जवाब में महिला ने खुद के नौकरी में होने का दावा किया था। सुहागरात को दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बने थे, लेकिन इसके बाद पति ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। पति का कहना था कि शादी से पहले उसकी पत्नी नौकरी नहीं करती थी।
कई बार उसने शैक्षिक योग्यता के सर्टिफिकेट दिखाने के लिए भी कहा, लेकिन उसने सर्टिफिकेट नहीं दिखाया। पति का कहना था कि शहर में सहज जीवन-यापन करने के लिए उसे कामकाजी महिला की जरूरत थी। न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने अपने आदेश में कहा है कि पति ने इस पवित्र रिश्ते को सामान खरीद-फरोख्त का सिस्टम बना दिया है। पति ने पत्नी की नौकरी को ज्यादा तवज्जो दी।_अदालत
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